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Friday, April 30, 2010

उत्तराखंड की भूमि देव भूमि ची परन्तु आज कल ये पर संकट आयूं ची आज पहाड़ का सारा जल स्रोत सूकिगा तापमान इतेया बढ़ी की क्या बुन ,आज से कुछ सालों पेली के बात होली जब मी कुछ २०-२२ सालो को होलू ,तब हम लोग जून का महिना भी पंखा ने चलोना छा पर आज की यु हालत ची की बस पूछा ना लोग गर्मी मा परेशान ची ...ये गो जिमेदार कु येगा बारा मा नी बोल सकदा क्यों कि गलती ता अपणी ही ची ,गलती हम लोगु कि हम तब कुछ नी कर सक्या अब बस पछताना ची .. पर अब भी कुछ नी करी ता हालत के होली ये कि कल्पना कन भी अकल्पनीय ची . कुछ दिन पेली मिल न्यूज़ मा सूणी कि उत्तराखंड मा बिजली कु संकट एगी आप सोचना हुला किले ,आपु ते बते दियूं कि ये कारण भी हम लोग ची ????? क्योंकि हमुल तब आवाज ने उठाई जब नया नया डैम को मंजूरी मिलणी छे ,विचारी गंगा ,यमुना,अलकनंदा , ओर भी बोत नदियाँ कब तक हमू ते बचाली बस नदियूँ को पानी कम ह्वेते ग, ह्वेते ग आज हालत आप का सामणी .लोग पेली गर्मियु मा पहाड़ू मा जाना छा पर अब क्या प्लेन क्या पहाड़ सब कु मौसम एक जन ,अब????????? आपूं पता ची ये से भी हमू पर फर्क पडलू जब लोग उत्तराखंड नी आला ता पहाड़े कि दुकानदारी बंद तब उत्तराखंड कि अर्थ बियवस्था चोपट भाई उत्तराखंड पर्यटन पर ता निर्भर ची किले ,है ना ????.उत्तराखंड चोपट ता हम चोपट. पर मजे कि बात ता यू ची हम चुप रयां किले ???????????
  • हिंदी --- उत्तराखंड की भूमि देव भूमि है परन्तु आज कल ये संकट में है आज पहाड़ के सारे जल स्रोत सूख गए हैं तापमान इतना बढ़ गया है कि क्या बोलें,आज से कुछ सालों पहले कि बात रही होगी जब में २०-२२ साल का था ,तब हम जून के महीने में भी पंखा नहीं चलाया करते थे पर आज ये हालत कि पूछो मत लोग गर्मी से परेशान ॥इसका जिमेदार कौन है ये हम नहीं बोल सकते क्यों कि गलती तो अपनी है ,गलती हम लोगों की हम तब कुछ नहीं कर सके बस अब पछता रहे हैं ..पर अब भी कुछ नहीं किया तो हालत क्या होगी कल्पना करना भी अकल्पनीय है ।कुछ दिन पहले मैंने न्यूज़ में सुना की उत्तराखंड में बिजली का संकट आ गया है आप सोच रहे होंगे क्यों,आप को बता दें इसका कारण भी हम लोग ही हैं????? क्योंकि हमने तब आवाज नहीं उठाई जब नए बांधों को मंजूरी मिल रही थी विचारी गंगा ,यमुना,अलकनंदा और भी बहुत नदियाँ कब तक हमें बचाएंगी नदियों का पानी कम होता गया होता गया आज हालत आप के सामने है .लोग पहले गर्मियों में पहाड़ों में जाते थे पर आज के पहाड़ के प्लेन सब के मौसम एक जैसे .अब ??????आप को पता है इन सब बातों का फर्क हम पर पड़ेगा जब लूग उत्तराखंड नहीं आयेंगे तो पहाड़ का बिजनेस बंद तब उत्तराखंड की अर्थब्यवस्था चोपट भाई उत्तराखंड पर्यटन पर तो निर्भर है क्यों ,है ना ????उत्तराखंड चोपट तो हम चोपट.पर मजे कि बातये है हम चुप क्यों हैं ??????????????
  • अरविन्द मालगुड़ी

2 comments:

Anonymous said...

खुद्दार एवं देशभक्त लोगों का स्वागत है!
सामाजिक क्षेत्र में कार्य करने वाले हर व्यक्ति का स्वागत और सम्मान करना प्रत्येक भारतीय नागरिक का नैतिक कर्त्तव्य है। इसलिये हम प्रत्येक सृजनात्कम कार्य करने वाले के प्रशंसक एवं समर्थक हैं, खोखले आदर्श कागजी या अन्तरजाल के घोडे दौडाने से न तो मंजिल मिलती हैं और न बदलाव लाया जा सकता है। बदलाव के लिये नाइंसाफी के खिलाफ संघर्ष ही एक मात्र रास्ता है।

अतः समाज सेवा या जागरूकता या किसी भी क्षेत्र में कार्य करने वाले लोगों को जानना बेहद जरूरी है कि इस देश में कानून का संरक्षण प्राप्त गुण्डों का राज कायम होता जा है। सरकार द्वारा जनता से टेक्स वूसला जाता है, देश का विकास एवं समाज का उत्थान करने के साथ-साथ जवाबदेह प्रशासनिक ढांचा खडा करने के लिये, लेकिन राजनेताओं के साथ-साथ भारतीय प्रशासनिक सेवा के अफसरों द्वारा इस देश को और देश के लोकतन्त्र को हर तरह से पंगु बना दिया है।

भारतीय प्रशासनिक सेवा के अफसर, जिन्हें संविधान में लोक सेवक (जनता के नौकर) कहा गया है, व्यवहार में लोक स्वामी बन बैठे हैं। सरकारी धन को भ्रष्टाचार के जरिये डकारना और जनता पर अत्याचार करना प्रशासन ने अपना कानूनी अधिकार समझ लिया है। कुछ स्वार्थी लोग इनका साथ देकर देश की अस्सी प्रतिशत जनता का कदम-कदम पर शोषण एवं तिरस्कार कर रहे हैं। ऐसे में, मैं प्रत्येक बुद्धिजीवी, संवेदनशील, सृजनशील, खुद्दार, देशभक्त और देश तथा अपने एवं भावी पीढियों के वर्तमान व भविष्य के प्रति संजीदा व्यक्ति से पूछना चाहता हूँ कि केवल दिखावटी बातें करके और अच्छी-अच्छी बातें लिखकर क्या हम हमारे मकसद में कामयाब हो सकते हैं? हमें समझना होगा कि आज देश में तानाशाही, जासूसी, नक्सलवाद, लूट, आदि जो कुछ भी गैर-कानूनी ताण्डव हो रहा है, उसका एक बडा कारण है, भारतीय प्रशासनिक सेवा के भ्रष्ट अफसरों के हाथ देश की सत्ता का होना।

शहीद-ए-आजम भगत सिंह के आदर्शों को सामने रखकर 1993 में स्थापित-"भ्रष्टाचार एवं अत्याचार अन्वेषण संस्थान" (बास)- के सत्रह राज्यों में सेवारत 4300 से अधिक रजिस्टर्ड आजीवन सदस्यों की ओर से मैं दूसरा सवाल आपके समक्ष यह भी प्रस्तुत कर रहा हूँ कि-सरकारी कुर्सी पर बैठकर, भेदभाव, मनमानी, भ्रष्टाचार, अत्याचार, शोषण और गैर-कानूनी काम करने वाले लोक सेवकों को भारतीय दण्ड विधानों के तहत कठोर सजा नहीं मिलने के कारण आम व्यक्ति की प्रगति में रुकावट एवं देश की एकता, शान्ति, सम्प्रभुता और धर्म-निरपेक्षता को लगातार खतरा पैदा हो रहा है! क्या हम हमारे इन नौकरों (लोक सेवक से लोक स्वामी बन बैठे अफसरों) को यों हीं सहते रहेंगे?

जो भी व्यक्ति इस संगठन से जुडना चाहे उसका स्वागत है और निःशुल्क सदस्यता फार्म प्राप्त करने के लिये निम्न पते पर लिखें या फोन पर बात करें :
डॉ. पुरुषोत्तम मीणा, राष्ट्रीय अध्यक्ष
भ्रष्टाचार एवं अत्याचार अन्वेषण संस्थान (बास)
राष्ट्रीय अध्यक्ष का कार्यालय
7, तँवर कॉलोनी, खातीपुरा रोड, जयपुर-302006 (राजस्थान)
फोन : 0141-2222225 (सायं : 7 से 8) मो. 098285-02666
E-mail : dr.purushottammeena@yahoo.in

अजय कुमार said...

हिंदी ब्लाग लेखन के लिए स्वागत और बधाई
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