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Sunday, August 29, 2010

इस व्योपारी को प्यास बहुत है..........




एक तरफ बर्बाद बस्तियाँ – एक तरफ हो तुम।
एक तरफ डूबती कश्तियाँ – एक तरफ हो तुम।
एक तरफ हैं सूखी नदियाँ – एक तरफ हो तुम।
एक तरफ है प्यासी दुनियाँ – एक तरफ हो तुम।

अजी वाह ! क्या बात तुम्हारी,
तुम तो पानी के व्योपारी,
खेल तुम्हारा, तुम्हीं खिलाड़ी,
बिछी हुई ये बिसात तुम्हारी,

सारा पानी चूस रहे हो,
नदी-समन्दर लूट रहे हो,
गंगा-यमुना की छाती पर
कंकड़-पत्थर कूट रहे हो,

उफ!! तुम्हारी ये खुदगर्जी,
चलेगी कब तक ये मनमर्जी,
जिस दिन डोलगी ये धरती,
सर से निकलेगी सब मस्ती,

महल-चौबारे बह जायेंगे
खाली रौखड़ रह जायेंगे
बूँद-बूँद को तरसोगे जब -
बोल व्योपारी – तब क्या होगा ?
नगद – उधारी – तब क्या होगा ??

आज भले ही मौज उड़ा लो,
नदियों को प्यासा तड़पा लो,
गंगा को कीचड़ कर डालो,

लेकिन डोलेगी जब धरती – बोल व्योपारी – तब क्या होगा ?
वर्ल्ड बैंक के टोकनधारी – तब क्या होगा ?
योजनकारी – तब क्या होगा ?
नगद-उधारी तब क्या होगा ?
एक तरफ हैं सूखी नदियाँ – एक तरफ हो तुम।
एक तरफ है प्यासी दुनियाँ – एक तरफ हो तुम।

गिरीश चंद्र तिबाडी (गिर्दा )

Tuesday, June 15, 2010

want home

प्रोपर्टी ही प्रोपर्टी आज हम कोई भी न्यूज़ पेपर उठा लें तो इस तरह के लुभावने विज्ञापन आपको अपने उस जाल में फसाने के लिए तैयार हैं जो डीलर ,बिल्डर ,डेवलपर द्वारा विछाये जाते हैं .आज रीयल स्टेट को असुरछित माना जाता है क्योंकि इसमें पारदर्शिता का अभाव है .विज्ञापनों ,स्किमों का मायाजाल आम आदमी को एसा फसा लेता है की बाद में पछताने पर भी कोई मौका नहीं मिलता परन्तु एक आशियाने को ढूडते लोग इसमें कैसे न कैसे फसते जा रहे रहे हैं ,प्रोपर्टी का रेट कोन तय करता है कोई नहीं जानता क्योंकि अगर आप प्रोपर्टी खरीदने जाएँ तो नित्य नए रेट सुनने को मिलते हैं" जेसा मुर्गा वेसा रेट" आप आज रीयल स्टेट के लिए एक मुर्गे से आधिक कुछ नहीं हैं ,परन्तु खुद को इससे जितना हों सके बचाएं .प्रोपटी खरीदने से पहले कुछ बातों का ध्यान रखें
० मोल भाव करें क्योंकि प्रोपर्टी के रेट किसी अथोर्टी द्वारा तय नहीं होते
० सुनी सुनाई बातों पर गोर न करें क्योंकि आज कल लोग बिना पता किये ही सुन कर तय कर देते हैं कि वहां अच्छा है वहां बुरा है ,वहां के रेट ये हैं वो हैं,इस तरह से मन बनाकर न जाएँ नहीं तो कोई और फाएदा उठा लेगा
० डीलर बिल्डर आदि कि बातों पर आँख मूंद कर भरोसा न करें ये समझ लें कि आप उनके लिए उपभोक्ता हैं व आपसे फायदा लेना उनका काम
० सभी तरह के बिकल्पों पर सोच कर निर्णय लें ,डीलर के अलावा अपने रिश्तेदारों ,परिचितों दोस्तों आदि से भी राय लें वो भीइस मामले में अतियंत मददगार हों सकते हैं
० जल्दीबाजी में निर्णय न लें पहले होम वर्क कर लें आप वेब साईट पर चेक कर सकते हैं ,बहुत से डीलरों से मिल सकते हैं, लोकेशन पर जा सकते हैं आस पास के लोगों से बात कर सकते हैं
० पता कर लें कि जो प्रोपर्टी आपको पसंद है वो किसी प्रकार से विवादित तो नहीं ,उसका नक्शा उसके ढाँचे के अनुरूप है या नहीं इस बारे में जानकारी आप सम्बंधित विभाग से ले सकते हैं
० डीलर का कमीशन पहले से ही तय कर लें व उससे हर प्रकार के पैसों का विवरण लें जो वो मांग करता है उसका लिखित विवरण लें
० आप पहले ही तय कर लें कि आपको क्या चीजें आपको अपनी और से करनी है जसे क्या बिजली ,पानी का कनेक्सन लगा मिलेगा, पानी की मोटर ,किचन ,कमरों का वूड वर्क पंखे ,लाइटस आदि सभी छोटी बड़ी चीजों का पता कर लें
० आपने सभी पेपर वर्क का काम पूरा कर लें
० ये देख लें की आप जिस लोकेशन में घर चाहते हैं उसके आस पास की सुविधाओं को भी चेक कर लें मार्किट ,कन्वेंश आदि
० आस पड़ोस का भी पता कर लें क्योंकि ये जीवन भर का साथ हों सकते हैं
घर जीवन में एक अनमोल तोहफा है जिसे आम आदमी एक बार ही खरीदता है .जिससे आपकी खुशियाँ जुडी हैं इसलिए फेसला सोच समझ कर लें ..
arvind malguri

Friday, April 30, 2010

उत्तराखंड की भूमि देव भूमि ची परन्तु आज कल ये पर संकट आयूं ची आज पहाड़ का सारा जल स्रोत सूकिगा तापमान इतेया बढ़ी की क्या बुन ,आज से कुछ सालों पेली के बात होली जब मी कुछ २०-२२ सालो को होलू ,तब हम लोग जून का महिना भी पंखा ने चलोना छा पर आज की यु हालत ची की बस पूछा ना लोग गर्मी मा परेशान ची ...ये गो जिमेदार कु येगा बारा मा नी बोल सकदा क्यों कि गलती ता अपणी ही ची ,गलती हम लोगु कि हम तब कुछ नी कर सक्या अब बस पछताना ची .. पर अब भी कुछ नी करी ता हालत के होली ये कि कल्पना कन भी अकल्पनीय ची . कुछ दिन पेली मिल न्यूज़ मा सूणी कि उत्तराखंड मा बिजली कु संकट एगी आप सोचना हुला किले ,आपु ते बते दियूं कि ये कारण भी हम लोग ची ????? क्योंकि हमुल तब आवाज ने उठाई जब नया नया डैम को मंजूरी मिलणी छे ,विचारी गंगा ,यमुना,अलकनंदा , ओर भी बोत नदियाँ कब तक हमू ते बचाली बस नदियूँ को पानी कम ह्वेते ग, ह्वेते ग आज हालत आप का सामणी .लोग पेली गर्मियु मा पहाड़ू मा जाना छा पर अब क्या प्लेन क्या पहाड़ सब कु मौसम एक जन ,अब????????? आपूं पता ची ये से भी हमू पर फर्क पडलू जब लोग उत्तराखंड नी आला ता पहाड़े कि दुकानदारी बंद तब उत्तराखंड कि अर्थ बियवस्था चोपट भाई उत्तराखंड पर्यटन पर ता निर्भर ची किले ,है ना ????.उत्तराखंड चोपट ता हम चोपट. पर मजे कि बात ता यू ची हम चुप रयां किले ???????????
  • हिंदी --- उत्तराखंड की भूमि देव भूमि है परन्तु आज कल ये संकट में है आज पहाड़ के सारे जल स्रोत सूख गए हैं तापमान इतना बढ़ गया है कि क्या बोलें,आज से कुछ सालों पहले कि बात रही होगी जब में २०-२२ साल का था ,तब हम जून के महीने में भी पंखा नहीं चलाया करते थे पर आज ये हालत कि पूछो मत लोग गर्मी से परेशान ॥इसका जिमेदार कौन है ये हम नहीं बोल सकते क्यों कि गलती तो अपनी है ,गलती हम लोगों की हम तब कुछ नहीं कर सके बस अब पछता रहे हैं ..पर अब भी कुछ नहीं किया तो हालत क्या होगी कल्पना करना भी अकल्पनीय है ।कुछ दिन पहले मैंने न्यूज़ में सुना की उत्तराखंड में बिजली का संकट आ गया है आप सोच रहे होंगे क्यों,आप को बता दें इसका कारण भी हम लोग ही हैं????? क्योंकि हमने तब आवाज नहीं उठाई जब नए बांधों को मंजूरी मिल रही थी विचारी गंगा ,यमुना,अलकनंदा और भी बहुत नदियाँ कब तक हमें बचाएंगी नदियों का पानी कम होता गया होता गया आज हालत आप के सामने है .लोग पहले गर्मियों में पहाड़ों में जाते थे पर आज के पहाड़ के प्लेन सब के मौसम एक जैसे .अब ??????आप को पता है इन सब बातों का फर्क हम पर पड़ेगा जब लूग उत्तराखंड नहीं आयेंगे तो पहाड़ का बिजनेस बंद तब उत्तराखंड की अर्थब्यवस्था चोपट भाई उत्तराखंड पर्यटन पर तो निर्भर है क्यों ,है ना ????उत्तराखंड चोपट तो हम चोपट.पर मजे कि बातये है हम चुप क्यों हैं ??????????????
  • अरविन्द मालगुड़ी

Tuesday, April 27, 2010

दर्द

दर्द ही तो दिल की सज़ा है ,
बिना दर्द के दिल की क्या दवा है ,
सब को अपना दर्द है यहाँ ,
किसे को किसी के दर्द का के पता है....
अरविन्द मालगुड़ी

सपने

जागना नहीं चाहता नींद से क्योंकि सपने रोकते हैं ..
उन सपनो में वो सब कुछ है जो मैं चाहता हूं ,इसलिए जागना नहीं चाहता..
पता है मुझे जागते ही सब कुछ छीन जाएगा ..चला जायेगा दूर ..,इसलिए जागना नहीं चाहता
बन्द आखों के पीछे सब कुछ मेरा है ..जानता हूं एक बार खुल गयी जो ये आखे ,वो सब छीन जाएगा
डरता हूं सब कुछ छीन जाने से ,इसलिए जागना नहीं चाहता
जागना नहीं चाहता नींद से क्योंकि सपने रोकते हैं ...
बंद आखों के इस और मैं दुनियाँ को चलता हूं ,और उस और वो मुझे ...
और मैं चलाना नहीं चाहता इस दुनिया के हिसाब से ,इसलिए जागना नहीं चाहता....
मेरी उस दुनिया में प्यार है सब के लिए ,न ग़रीबी न भुकमरी ,न दुश्मनी ,न आतंकवाद..
वो कुछ भी नहीं है जो मानवता का कलंक है ..इसलिए जागना नहीं चाहता...
पर जागना तो होगा ... जानता हूं एक दिन देर सबेर एक ठोकर मुझे जगाएगी ...
और जागते ही ..में जान जाऊंगा दुनिया का सच, कि मानवता कलंकित है मानव के हाथों...
इसलिए जागना नहीं चाहता...
अरविन्द मालगुड़ी/अरू

Wednesday, April 21, 2010

मियारा पियारा उत्तराखंड का लोगों कु नमस्कार ...

आज क्या हालत यु ची मियारा पहाड़ा कि , सब पाणी सूकी ....
सारा बूँद कु तरसना ची ,सब पाणी सूकी ....
जंगल रुऊणा पहाड़ रुओणा ,सब पाणी सूकी ...
अब हम रव्ला हम सब रव्ला ,सब पाणी सूकी...
अब ता सम्हल जावा कुछ ता अकल ल्यावा ,ओ जी सब पाणी सूकी .......