जागना नहीं चाहता नींद से क्योंकि सपने रोकते हैं ..
उन सपनो में वो सब कुछ है जो मैं चाहता हूं ,इसलिए जागना नहीं चाहता..
पता है मुझे जागते ही सब कुछ छीन जाएगा ..चला जायेगा दूर ..,इसलिए जागना नहीं चाहता
बन्द आखों के पीछे सब कुछ मेरा है ..जानता हूं एक बार खुल गयी जो ये आखे ,वो सब छीन जाएगा
डरता हूं सब कुछ छीन जाने से ,इसलिए जागना नहीं चाहता
जागना नहीं चाहता नींद से क्योंकि सपने रोकते हैं ...
बंद आखों के इस और मैं दुनियाँ को चलता हूं ,और उस और वो मुझे ...
और मैं चलाना नहीं चाहता इस दुनिया के हिसाब से ,इसलिए जागना नहीं चाहता....
मेरी उस दुनिया में प्यार है सब के लिए ,न ग़रीबी न भुकमरी ,न दुश्मनी ,न आतंकवाद..
वो कुछ भी नहीं है जो मानवता का कलंक है ..इसलिए जागना नहीं चाहता...
पर जागना तो होगा ... जानता हूं एक दिन देर सबेर एक ठोकर मुझे जगाएगी ...
और जागते ही ..में जान जाऊंगा दुनिया का सच, कि मानवता कलंकित है मानव के हाथों...
इसलिए जागना नहीं चाहता...
अरविन्द मालगुड़ी/
अरू