- हिंदी --- उत्तराखंड की भूमि देव भूमि है परन्तु आज कल ये संकट में है आज पहाड़ के सारे जल स्रोत सूख गए हैं तापमान इतना बढ़ गया है कि क्या बोलें,आज से कुछ सालों पहले कि बात रही होगी जब में २०-२२ साल का था ,तब हम जून के महीने में भी पंखा नहीं चलाया करते थे पर आज ये हालत कि पूछो मत लोग गर्मी से परेशान ॥इसका जिमेदार कौन है ये हम नहीं बोल सकते क्यों कि गलती तो अपनी है ,गलती हम लोगों की हम तब कुछ नहीं कर सके बस अब पछता रहे हैं ..पर अब भी कुछ नहीं किया तो हालत क्या होगी कल्पना करना भी अकल्पनीय है ।कुछ दिन पहले मैंने न्यूज़ में सुना की उत्तराखंड में बिजली का संकट आ गया है आप सोच रहे होंगे क्यों,आप को बता दें इसका कारण भी हम लोग ही हैं????? क्योंकि हमने तब आवाज नहीं उठाई जब नए बांधों को मंजूरी मिल रही थी विचारी गंगा ,यमुना,अलकनंदा और भी बहुत नदियाँ कब तक हमें बचाएंगी नदियों का पानी कम होता गया होता गया आज हालत आप के सामने है .लोग पहले गर्मियों में पहाड़ों में जाते थे पर आज के पहाड़ के प्लेन सब के मौसम एक जैसे .अब ??????आप को पता है इन सब बातों का फर्क हम पर पड़ेगा जब लूग उत्तराखंड नहीं आयेंगे तो पहाड़ का बिजनेस बंद तब उत्तराखंड की अर्थब्यवस्था चोपट भाई उत्तराखंड पर्यटन पर तो निर्भर है क्यों ,है ना ????उत्तराखंड चोपट तो हम चोपट.पर मजे कि बातये है हम चुप क्यों हैं ??????????????
- अरविन्द मालगुड़ी
Friday, April 30, 2010
उत्तराखंड की भूमि देव भूमि ची परन्तु आज कल ये पर संकट आयूं ची आज पहाड़ का सारा जल स्रोत सूकिगा तापमान इतेया बढ़ी की क्या बुन ,आज से कुछ सालों पेली के बात होली जब मी कुछ २०-२२ सालो को होलू ,तब हम लोग जून का महिना भी पंखा ने चलोना छा पर आज की यु हालत ची की बस पूछा ना लोग गर्मी मा परेशान ची ...ये गो जिमेदार कु येगा बारा मा नी बोल सकदा क्यों कि गलती ता अपणी ही ची ,गलती हम लोगु कि हम तब कुछ नी कर सक्या अब बस पछताना ची .. पर अब भी कुछ नी करी ता हालत के होली ये कि कल्पना कन भी अकल्पनीय ची . कुछ दिन पेली मिल न्यूज़ मा सूणी कि उत्तराखंड मा बिजली कु संकट एगी आप सोचना हुला किले ,आपु ते बते दियूं कि ये कारण भी हम लोग ची ????? क्योंकि हमुल तब आवाज ने उठाई जब नया नया डैम को मंजूरी मिलणी छे ,विचारी गंगा ,यमुना,अलकनंदा , ओर भी बोत नदियाँ कब तक हमू ते बचाली बस नदियूँ को पानी कम ह्वेते ग, ह्वेते ग आज हालत आप का सामणी .लोग पेली गर्मियु मा पहाड़ू मा जाना छा पर अब क्या प्लेन क्या पहाड़ सब कु मौसम एक जन ,अब????????? आपूं पता ची ये से भी हमू पर फर्क पडलू जब लोग उत्तराखंड नी आला ता पहाड़े कि दुकानदारी बंद तब उत्तराखंड कि अर्थ बियवस्था चोपट भाई उत्तराखंड पर्यटन पर ता निर्भर ची किले ,है ना ????.उत्तराखंड चोपट ता हम चोपट. पर मजे कि बात ता यू ची हम चुप रयां किले ???????????
Tuesday, April 27, 2010
दर्द
दर्द ही तो दिल की सज़ा है ,
बिना दर्द के दिल की क्या दवा है ,
सब को अपना दर्द है यहाँ ,
किसे को किसी के दर्द का के पता है....
बिना दर्द के दिल की क्या दवा है ,
सब को अपना दर्द है यहाँ ,
किसे को किसी के दर्द का के पता है....
अरविन्द मालगुड़ी
सपने
जागना नहीं चाहता नींद से क्योंकि सपने रोकते हैं ..
उन सपनो में वो सब कुछ है जो मैं चाहता हूं ,इसलिए जागना नहीं चाहता..
पता है मुझे जागते ही सब कुछ छीन जाएगा ..चला जायेगा दूर ..,इसलिए जागना नहीं चाहता
बन्द आखों के पीछे सब कुछ मेरा है ..जानता हूं एक बार खुल गयी जो ये आखे ,वो सब छीन जाएगा
डरता हूं सब कुछ छीन जाने से ,इसलिए जागना नहीं चाहता
जागना नहीं चाहता नींद से क्योंकि सपने रोकते हैं ...
बंद आखों के इस और मैं दुनियाँ को चलता हूं ,और उस और वो मुझे ...
और मैं चलाना नहीं चाहता इस दुनिया के हिसाब से ,इसलिए जागना नहीं चाहता....
मेरी उस दुनिया में प्यार है सब के लिए ,न ग़रीबी न भुकमरी ,न दुश्मनी ,न आतंकवाद..
वो कुछ भी नहीं है जो मानवता का कलंक है ..इसलिए जागना नहीं चाहता...
पर जागना तो होगा ... जानता हूं एक दिन देर सबेर एक ठोकर मुझे जगाएगी ...
और जागते ही ..में जान जाऊंगा दुनिया का सच, कि मानवता कलंकित है मानव के हाथों...
इसलिए जागना नहीं चाहता...
अरविन्द मालगुड़ी/अरू
उन सपनो में वो सब कुछ है जो मैं चाहता हूं ,इसलिए जागना नहीं चाहता..
पता है मुझे जागते ही सब कुछ छीन जाएगा ..चला जायेगा दूर ..,इसलिए जागना नहीं चाहता
बन्द आखों के पीछे सब कुछ मेरा है ..जानता हूं एक बार खुल गयी जो ये आखे ,वो सब छीन जाएगा
डरता हूं सब कुछ छीन जाने से ,इसलिए जागना नहीं चाहता
जागना नहीं चाहता नींद से क्योंकि सपने रोकते हैं ...
बंद आखों के इस और मैं दुनियाँ को चलता हूं ,और उस और वो मुझे ...
और मैं चलाना नहीं चाहता इस दुनिया के हिसाब से ,इसलिए जागना नहीं चाहता....
मेरी उस दुनिया में प्यार है सब के लिए ,न ग़रीबी न भुकमरी ,न दुश्मनी ,न आतंकवाद..
वो कुछ भी नहीं है जो मानवता का कलंक है ..इसलिए जागना नहीं चाहता...
पर जागना तो होगा ... जानता हूं एक दिन देर सबेर एक ठोकर मुझे जगाएगी ...
और जागते ही ..में जान जाऊंगा दुनिया का सच, कि मानवता कलंकित है मानव के हाथों...
इसलिए जागना नहीं चाहता...
अरविन्द मालगुड़ी/अरू
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